वांछित मन्त्र चुनें

ए॒भिर्नृभि॑रिन्द्र त्वा॒युभि॑ष्ट्वा म॒घव॑द्भिर्मघव॒न्विश्व॑ आ॒जौ। द्यावो॒ न द्यु॒म्नैर॒भि सन्तो॑ अ॒र्यः क्ष॒पो म॑देम श॒रद॑श्च पू॒र्वीः ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ebhir nṛbhir indra tvāyubhiṣ ṭvā maghavadbhir maghavan viśva ājau | dyāvo na dyumnair abhi santo aryaḥ kṣapo madema śaradaś ca pūrvīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒भिः। नृऽभिः॑। इ॒न्द्र॒। त्वायुऽभिः॑। त्वा॒। म॒घव॑त्ऽभिः। म॒घ॒ऽव॒न्। विश्वे॑। आ॒जौ। द्यावः॑। न। द्यु॒म्नैः। अ॒भि। सन्तः॑। अ॒र्यः। क्ष॒पः। म॒दे॒म॒। श॒रदः॑। च॒। पू॒र्वीः॑ ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:16» मन्त्र:19 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:19


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजजन के लिये करने योग्य विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) बहुत ऐश्वर्य्य से युक्त (इन्द्र) शत्रुओं के नाशकारक राजन् ! हम लोग (एभिः) इन पूर्वोक्त (त्वायुभिः) आपकी कामना करते हुए (मघवद्भिः) बहुत श्रेष्ठ धनों से युक्त (नृभिः) नायक मनुष्यों के साथ (विश्वे) सम्पूर्ण (आजौ) संग्राम में (द्यावः) किरणों के (न) तुल्य और (द्युम्नैः) यशरूप धन से युक्त सत्पुरुषों के साथ (त्वा) आपके आश्रय का (सन्तः) वर्ताव करते हुए (अर्य्यः) स्वामी के तुल्य (पूर्वीः) पुरानी (क्षपः) रात्रियों और (शरदः) शरद् ऋतुओं भर (च) भी (अभि, मदेम) सब ओर से आनन्द करें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो लोग धार्मिक शरीर और आत्मा के बल से युक्त सत्य की कामना करते हुए अपने राज्य में हुए धनयुक्त पुरुषों के साथ दृढ़ मेल कर और शत्रुओं को जीत के राज्य की प्रशंसा करते हैं, वे सूर्य्य के प्रकाश के सदृश कीर्तियुक्त और धनी होकर सब काल में आनन्दित होते हैं ॥१९॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजकर्त्तव्यताविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन्निन्द्र राजन् ! वयमेभिस्त्वायुभिर्मघवद्भिर्नृभिः सह विश्व आजौ द्यावो न द्युम्नैः सह त्वाऽऽश्रिताः सन्तोऽर्य्य इव पूर्वीः क्षपश्शरदश्चाभि मदेम ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एभिः) पूर्वोक्तैः (नृभिः) नेतृभिः (इन्द्र) शत्रूणां विदारक (त्वायुभिः) त्वां कामयमानैः (त्वा) त्वाम् (मघवद्भिः) बहुपूजितधनयुक्तैः (मघवन्) बह्वैश्वर्य्य (विश्वे) समग्रे (आजौ) सङ्ग्रामे (द्यावः) किरणाः (न) इव (द्युम्नैः) यशोधनयुक्तैः (अभि) (सन्तः) वर्त्तमानाः (अर्य्यः) स्वामी (क्षपः) रात्रीः (मदेम) आनन्देम (शरदः) शरदृतून् (च) (पूर्वीः) पुरातनीः ॥१९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये धार्मिकैः शरीरात्मबलैः सत्यं कामयमानैः स्वराज्यैर्भवैर्धनाढ्यैः पुरुषैः सह दृढं सन्धिं कृत्वा शत्रून् विजित्य राज्यं प्रशंसन्ति ते सूर्य्यप्रकाश इव कीर्त्तिमन्तो धनिनो भूत्वा सर्वदाऽऽनन्दिता भवन्ति ॥१९॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे लोक धार्मिक, शरीर व आत्मा यांच्या बलाने युक्त, सत्याची कामना करत आपल्या राज्यातील धनवान पुरुषांबरोबर दृढ संघटन करून शत्रूंना जिंकून राज्याची प्रशंसा करतात, ते सूर्याच्या प्रकाशाप्रमाणे कीर्तीयुक्त व धनवान बनून सर्व काळी आनंदित होतात. ॥ १९ ॥